ज्ञान तथा मार्गदर्शन की सच्ची अपेक्षा करने वालों के लिये ढोंगियों की भीड़ में सच्चे गुरुओं को ढूँढना और उनका आशीष पाना असम्भव नहीं, लेकिन मुश्किल जरूर है!
"बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे? या बोलोगे तभी तो कोई सुनेगा!" इन दोनों छोटे से वाक्यों में बोलने की बात तो कही गयी है| बोलने के लिये लोगों को प्रेरित करने का प्रयास किया गया है, लेकिन बोलना या अपनी बात को कहना भी कोई सामान्य या छोटी बात नहीं है| बोलने से पूर्व यह जानना बेहद जरूरी है कि जब हम कुछ भी बोलते हैं तो उसका हमारे लिये या दूसरों के लिये क्या असर या मतलब होता है? बोलना क्या होता है? ये कुछ ऐसी गहन बातें हैं, जिन्हें बुद्धि (दिमांग) से समझना आसाना या सामान्य नहीं है, लेकिन इसे समझना बेहद