"जीवन को सही अर्थों में सफलतापूर्वक जीना और जीवन की सार्वभौमिक सच्चाईयों को स्वीकार करना, सच्चाईयों में आस्था रखना और सच्चाईयों को प्यार करना किसी भी धर्म में या संस्कृति में निन्दनीय नहीं है|"
लोहे का टुकड़ा जब चुम्बक के गुणों से सम्पन्न हो जाता है तो वह अपने वजन से बारह गुने वजन के लोहे के टुकड़े को उठा सकता है| लेकिन यदि हम उसमें से चुम्बकीय गुणों को नष्ट कर दें, तो यही लोहे का टुकड़ा एक तिनके या रूई तक को नहीं उठा सकता| ठीक इसी प्रकार से चुम्बकीय आकर्षक गुणों से सम्पन्न शांति को प्राप्त ज्ञानवान गुरुजन आशा, विश्वास, आस्था और नित-नयी ऊर्जा से भरे हुए होते हैं| वे ठीक से जानते हैं कि उनका जन्म जीतने, सफल होने, ऊँचाईयॉं छूने और मानवता के उत्थान के लिये हुआ है|
जबकि इसके ठीक विपरीत संसार में अधिकतर ऐसे लोग होते हैं, जिनमें चुम्बकीय गुणों को तो छोडिये, किसी भी प्रकार के आकर्षक का सामान्य गुण भी नहीं होता है| समाज में अधिकतर संख्या ऐसे ही लोगों की है| ऐसे लोग अधिकतर समय अविश्वास, शंका, वहम, भय, डर और नकारात्मक भावों से भरे होते हैं| ऐसे नकारात्मकता से भरे लोग हमेशा हर काम के प्रारम्भ में "कहीं ऐसा हो गया तो, क्या होगा?" का काल्पनिक सवाल खड़ा करने से नहीं चूकते हैं| हर कार्य से पहले इन लोगों को नकारात्कम और आशंका ही नज़र आती है! ये लोग अपनी इसी एक मात्र कमी के कारण असफलता और निराशा के अन्धकार में पल-प्रतिपल मर-मर कर जीने को विवश होते हैं| ये लोग जहाँ एक ओर दूसरों को शांति से नहीं जीने देते हैं, वहीं दूसरी ओर ये लोग अपने जीवन को जीते नहीं हैं, बल्कि जीवन को काटते हैं| उनके अन्तर्मन (अन्तरात्मा) में छुपकर बैठा काल्पनिक डर और निराधार वहम उन्हें न तो आगे बढने देता है और न हीं उन्हें उनके जीवन को सही अर्थों में जीने ही देता है|
यदि ऐसे लोग "सत्य-धर्म" के व्यावहारिक तथा प्राकृतिक सूत्रों को और ‘‘वैज्ञानिक-प्रार्थना’’ के महत्व को समझ जायें तो कोई भी साधारण से साधारण व्यक्ति भी चुम्बकीय आकर्षण से युक्त गुणों से सराबोर हो सकता है| मैं क्या कोई भी आस्थावान व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि प्रार्थना करना कोई बुरी बात है| क्योंकि जीवन में कभी न कभी, कहीं न कहीं, हम में से सभी लोग प्रार्थना अवश्य करते हैं|
हम में से अधिकतर लोग तब प्रार्थना करते हैं, जबकि हम किसी भयानक मुसीबत या समस्या में फंस जाते हैं! या जब हम या हमारा कोई किसी भयंकर बीमारी या मुसीबत या दुर्घटना से जूझ रहा होता है! ऐसे समय में हमारे अन्तर्मन से स्वत: ही प्रार्थना निकलने लगती हैं| इसका मतलब ये हुआ कि हम प्रार्थना करने के लिये किसी मुसीबत या अनहोनी का इन्तजार करते रहते हैं! यदि हमें प्रार्थना की शक्ति में पक्का और दृढ विश्वास है तो हमें सामान्य दिनों में भी, बल्कि हर दिन ही प्रार्थना करनी चाहिये, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि "हम में से बिरले ही जानते हैं कि सफल और परिणामदायी प्रार्थना कैसे की जाती है?" यही कारण है कि अनेकों बार मुसीबत के समय में हमारे हृदय से निकलने वाली और सामूहिक प्रार्थना भी असफल हो जाती हैं! हम निराश हो जाते हैं! प्रार्थना की शक्ति के प्रति हमारी आस्था धीरे-धीरे कम या समाप्त होने लगती है! जिससे निराशा और अवसाद का जन्म होता है, जबकि प्रार्थना की असफलता के लिए प्रार्थना की शक्ति नहीं, बल्कि हमारी अज्ञानता ही जिम्मेदार होती है! इसलिये यह जानना बहुत जरूरी है कि सफल, सकारात्मक और परिणामदायी प्रार्थना कैसे की जाये! सफल, सकारात्मक और परिणामदायी प्रार्थना का नाम ही-‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ है और ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ ही "कारगर प्रार्थना" है!
इस वैज्ञानिक प्रार्थना का किसी भी प्रचलित धर्म या सम्प्रदाय या पंथ से कोई लगाव या विरोध नहीं है| यह प्रार्थना तो जीवन की भलाई और जीवन के उत्थान के लिये है| किसी भी धर्म में इसकी मनाही नहीं है|
‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ के जरिये जीवन को सही अर्थों में सफलतापूर्वक जीना और जीवन की सार्वभौमिक सच्चाईयों को स्वीकार करना, सिखाया जाता है और इन जीवन मूल्यों में आस्था रखना और उन्हें प्यार करना संसार के किसी भी धर्म में निन्दनीय नहीं है|
इसीलिये हमारे द्वारा केवल ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ की जाती है, इच्छुक लोगों से ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ करवाई जाती है और सही तरीके से, सही ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ सिखाई जाती है, जो किसी के भी जीवन में सुख, शान्ति, सफलता, खुशी और सौन्दर्य बिखेर सकती है| जरूरत है इस ‘‘वैज्ञानिक प्रार्थना’’ को "सत्य-धर्म" के जरिये सीखने की पात्रता अर्जित करने और अपने जीवन में इसे अपनाने की|
परमात्मा सभी का भला करते हैं| परमात्मा कभी किसी का बुरा नहीं करता| फिर हम परमात्मा के उपहार मानव जीवन रूपी प्रसाद का रसास्वादन करने में क्यों भूल कर रहे हैं?
Subh vichar.
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तीन भूत और चार चुड़ैलें।!
14 सप्ताह का हो गया ब्लॉग समीक्षा कॉलम।